हतास व निराश पहाड़ी क्षेत्रों के आलू उत्पादक।
1 min read– डा० राजेंद्र कुकसाल
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की व्यवसायिक खेती सदियों से होती आ रही है।
पहाड़ी क्षेत्रों का उत्पादित आलू माह जून से माह सितम्बर तक बाजार में आता है उस समय बाजार में कोल्ड स्टोरेज का आलू बिकता है। नया आलू होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों का उत्पादित आलू अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट होता है जिसकी बाजार में अधिक मांग रहती है।
पहाडी क्षेत्रों में प्रमाणित आलू बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं किए गए वल्कि इसके विपरीत राज्य बनने के बाद आलू बीज उत्पादन फार्म बन्द कर दिए गए।
समय पर आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध न होने के कारण इन क्षेत्रों में घट रहा है आलू उत्पादन।
पहाड़ी क्षेत्रों में आलू बीज की मांग दिसंबर माह से मार्च तक रहती है आलू बीज की मांग करने पर सरकारी नुमाइंदों द्वारा हर बर्ष आलू उत्पादकों को आलू बीज की व्यवस्था के झूठे आश्वासन दिए जाते हैं फिर ढाक के तीन पात।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की व्यवसायिक खेती परंपरागत रूप से सदियों से हो रही है। आलू उत्पादन इन क्षेत्रो के कृषकों की रोजी – रोटी व आजीविका से जुड़ा हुआ विषय है।
उत्तराखंड के नीति निर्धारकों के गलत निर्णयों के कारण आज इन पहाड़ी क्षेत्रों के आलू उत्पादक परेशान व निराश हैं जिस कारण आलू उत्पादन का क्षेत्रफल काफी घटा है ।
उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व पर्वतीय क्षेत्रों के प्रत्येक जनपद में एक या दो आलू बीज उत्पादन फार्म होते थे –
टिहरी जनपद में धनौल्टी,काणाताल उत्तरकाशी में द्वारी,रैथल, जरमोला पौड़ी में भरसार,खपरोली रुद्रप्रयाग में चिरवटिया, घिमतोली
चमोली जिले में परसारी,कोटी,रामणी पिथौरागढ़ में, बलाती, मुनस्यारी ,धारचुला अल्मोड़ा में दूनागिरी , जागेश्वर नैनीताल जनपद में, गागर, रामगढ़ आदि। इन विभागीय आलू फार्मों में हिमाचल प्रदेश के कुफरी या अन्य क्षेत्रों से आलू का फाउंडेशन बीज मंगा कर आलू का प्रमाणित बीज तैयार किया जाता था जिसे मांग के अनुसार स्थानीय आलू उत्पादकों को आलू बुवाई के समय वितरित किया जाता था। आलू के प्रमाणित बीज की मांग बहुत अधिक रहती है इन आलू फार्मौ में कुछ कृषक दैनिक श्रमिक के रूप मात्र इसलिए कार्य करते थे कि उन्हें आलू बीज की छर्री याने ग्रेडिंग के बाद जो छोटा आलू का बीज बच जाता है उन्हें मिल सके क्योंकि दैनिक श्रमिकों को ही आलू की छर्रियां उचित मूल्य पर दी जाती थी ऐसा मेरा आलू फार्म गागर जनपद नैनीताल का अनुभव रहा है।
हमारे देश में मात्र 30 प्रतिशत ही आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध हो पाता है ।पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादित आलू बीज की मांग अधिक रहती है। पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादित प्रमाणित आलू बीज बोने से कृषकों को 16 – 20 गुना से भी अधिक उपज मिलती है वहीं बाजार से क्रय किए गए सामान्य व अपनी पुरानी फसल से रखे आलू बीज से उपज काफी कम याने 3 – 4 गुना ही आलू की उपज मिल पाती हैं।
अस्सी के दशक में बीज प्रमाणीकरण संस्था का कार्यालय चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में खोला गया था जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के कृषक आसानी से प्रमाणीकरण कर प्रमाणित आलू बीज का उत्पादन कर सकें इस कार्य के लिए जोशीमठ मुनस्यारी व उत्तरकाशी में उद्यान विभाग के अतिरिक्त कर्मचारियों को आलू के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु नियुक्त भी किया गया था। आज इस प्रमाणीकरण कार्यालय का कहीं अता-पता नहीं है।
उत्तराखंड राज्य बनने पर उमीद जगी थी कि पहाडी क्षेत्रों के कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा किन्तु अलग राज्य बनते ही उत्तराखंड के नीति निर्धारकों द्वारा उद्यान विभाग के आलू बीज उत्पादन फार्मों को बन्द कर दिया गया तथा इन फार्मों को NGOs तथा पन्त नगर विश्व विद्यालय को हस्थानान्तरण कर दिया गया। इन आलू फार्मौ के बन्द होने से स्थानीय कृषकों को आलू का प्रमाणित बीज मिलना बंद हो गया । उद्यान विभाग द्वारा आलू बीज की कोई अतिरिक्त व्यवस्था आलू उत्पादकों के लिए नहीं की गई। कृषकों ने स्वयंम के आलू बीज से या बाजार में उपलब्ध सामान्य किस्म के आलू की बुवाई की जिससे उनको आलू की बहुत कम उपज मिली। आलू उत्पादकों को आलू की खेती कम उपज के कारण अलाभ कारी लगने लगी जिस कारण आलू की खेती कम होती गई।
उद्यान विभाग द्वारा फरवरी मार्च माह में काशीपुर व अन्य मैदानी क्षेत्रों में उगाया गया नया बीज का आलू बिना dormancy break किये कई पहाड़ी क्षेत्रों में भेजने से भी आलू उपज पर प्रतिकूल असर पड़ा आज इन क्षेत्रों के कृषकों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है।
हजारौं हैक्टेयर आलू फार्मों के बन्द होने के बाद भी उद्यान विभाग के 2015- 2016 के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में 25889.76 हैक्टेयर क्षेत्र फल में आलू की खेती की जाती है जिससे 358244.23 मेंट्रिक टन आलू का उत्पादन होना दर्शाया गया है जो कि विश्वसनीय नहीं लगता।
पिथौरागढ़ में मुनस्यारी, धारचुला व मदकोट क्षेत्र में बौना,क्वीरी,सरमोली, गोल्फा,निर्तोली, गिरगांव आदि लगभग 40 से भी अधिक गांवों के कृषक सहकारिता के माध्यम से आलू प्रमाणित बीज का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं अन्य जनपदों में भी इसी तरह के प्रयास होने चाहिए।
उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी व चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंडों में आलू प्रमाणित बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।
रिलायंस फाउंडेशन उत्तरकाशी द्वारा जनपद के भटवाड़ी विकास खण्ड के अन्तर्गत जखोल,द्वारी,रैथल,नतीण,पाला,गोरसाली,वारसू,पाई आदि गांवों का चयन बर्ष 2014-2015 में आजीविका से जुड़े कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया। इस क्षेत्र के कृषक पूर्व से ही आलू उत्पादन करते आ रहे हैं किन्तु क्षेत्र के आलू बीज उत्पादन फार्म द्वारी के बन्द हो जाने के कारण क्षेत्र के कृषकों को प्रमाणित आलू बीज मिलना बंद हो गया। आलू का प्रमाणित बीज न मिल पाने के कारण कृषक स्वयमं के उत्पादित आलू बीज से आलू की खेती कर रहे थे जिससे उनको आलू की बहुत कम उपज मिल रही थी धीरे धीरे आलू की अलाभकारी खेती होने के कारण इस क्षेत्र के आलू उत्पादक आलू की खेती छोड़ने लगे। क्षेत्र में कार्यरत रिलायंस फाउंडेशन द्वारा चयनित गांव के कृषकों का हिमाचल प्रदेश के लाहोल स्फित आलू उत्पादक संघ के कृषकों से संपर्क करवाया गया साथ ही उनके माध्यम से ही प्रमाणित आलू बीज स्वयंम कृषकों द्वारा क्रय किया गया जिससे पहले की अपेक्षा आलू की उपज कई गुना अधिक हुयी अब यहां के कृषक हिमाचल प्रदेश के आलू उत्पादकों से सम्पर्क कर आलू बीज की व्यवस्था स्वयंम से कर रहे हैं इस कार्य के लिए कृषकों ने रिलायंस फाउंडेशन की सहायता से प्रत्येक ग्राम सभा में ग्राम विकास कोष बनाये है जिसमें ग्राम वासियों द्वारा प्रत्येक माह धन जमा किया जाता है इस कोष का संचालन ग्राम वासी स्वयमं करते हैं ग्राम विकास कोष से ही क्षेत्र के आलू उत्पादक ,आलू बीज क्रय करते है।
वर्तमान में 12 गांव के कृषक समूह में आलू का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं।
उद्यान विभाग द्वारा बजट के अनुसार आलू का प्रमाणित बीज मुनस्यारी धारचुला व अन्य स्थानों से मंगा कर आधी कीमत पर आलू उत्पादकों को वितरित किया जाता है किन्तु मांग के अनुसार यह काफी कम होता है साथ ही दूर से लाने के कारण कभी कभी समय पर भी उपलब्ध नहीं हो पाता है।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बनेंगी किन्तु ऐसा नहीं हो पाया। योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके।
यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।
राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
योजनाओं में जबतक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी सोचना वेमानी है।
यदि इन पहाड़ी क्षेत्रों के कृषकों को योजनाओं में समय पर प्रमाणित आलू का बीज उपलब्ध कराया जाय तो इन कृषकों की आर्थिक स्थिति अच्छी हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्र के इन आलू उत्पादकों के लिए सरकार को बिशेष प्रयास करने होंगे यदि यही स्थिति बनी रहती है तो इन क्षेत्रों से भी पलायन बढेगा।
नीति निर्धारकों को चाहिए कि योजनाओं में आलू बीज उत्पादन की कार्य योजना बनाकर मुनस्यारी धारचुला की तरह ही चमोली जनपद के जोशीमठ एवं उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी विकास खंडों में आलू उत्पादक संघ बना कर आलू उत्पादकों से आलू का प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम शुरू करने का प्रयास करना चाहिए साथ ही पूर्व की भांति हर जनपद में आलू बीज उत्पादन फार्म विकसित किए जायं जिससे ऊंचाई व अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में फिर से स्थानीय प्रमाणित आलू बीज समय पर मिल सके जिससे इन क्षेत्रों की आलू की घटती जोत रुक सके तथा आलू उत्पादक फिर से आलू की लाभकारी खेती कर सकें तथा राज्य हिमाचल प्रदेश की तरह आलू बीज उत्पादक राज्य बन सके।
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पहाड़ी क्षेत्रों में आलू बीज की मांग दिसंबर माह से मार्च तक रहती है आलू बीज की मांग करने पर सरकारी नुमाइंदों द्वारा हर बर्ष आलू उत्पादकों को आलू बीज की व्यवस्था के झूठे आश्वासन दिए जाते हैं फिर ढाक के तीन पात ! पढ़िए समाचार पत्रों /सोशल मीडिया में आलू बीज उत्पादन पर की गई टिप्पणियां।
Dainik Jagran 11Jun 2017
गोदाम में सड़ा डाला 50 क्विंटल आलू बीज।
रानीखेत : उद्यान विभाग का हाल भी अजब है। अबकी बेहतर उत्पादन केन्द्र लिए विभाग ने तराई से आलू बीज तो मंगा लिया(पर्वतीय क्षेत्रों में तराई में उत्पादित नया खुदा आलू का बीज अच्छी उपज नहीं देता किन्तु उद्यान विभाग बार बार यही गलती दुहराता है जिससे कृषकों को विभागीय योजनाओं पर से विश्वास उठ रहा है ) मगर किसानों को प्रोत्साहित किए बगैर डिमांड से अधिक स्टॉक कर दिया गया। नतीजतन सब्जी उत्पादक मजखाली क्षेत्र का 50 क्विंटल बीज गोदाम में ही पड़े पडे़ सड़ रहा है। किसानों का तर्क है कि समय पर काफी देरी से बीज भेजे जाने के कारण लगा पाना संभव नहीं था।
अब की पर्वतीय अंचल के आलू उत्पादक गांवों के लिए रुद्रपुर स्थित फार्म से बीज मंगाया गया था। इसका खरीद मूल्य 1400 रुपये प्रति क्विंटल थी। उद्यान विभाग की ओर से मजखाली स्थित सचल दल केंद्र में 60 क्विंटल बीज भेजा गया। मगर इसमें से किसानों ने मात्र 10 क्विंटल ही खरीदा, और अधिक न खरीदने के पीछे देरी बताई गई।
इधर केंद्र प्रभारी कहते हैं अप्रैल में 20 क्विंटल आलू बीज की डिंमाड भेजी गई थी। मगर 27 अप्रैल को 40 क्विंटल अतिरिक्त बीज भेज दिया गया। ऐसे में शेष 50 कुंतल गोदाम में डंप हो गया है। उधर डीएचओ ने स्पष्ट किया कि मांग के अनुरूप ही बीज भेजा गया। अब उसे वापस नहीं लिया जाएगा।
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गुणवत्ता पर भी उठे सवाल।
आलू उत्पादक मजखाली क्षेत्र के काश्तकारों ने रुद्रपुर के बीज की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं। आरोप है कि पहले तो समय पर बीज नहीं मिला। भेजा भी गया तो उत्पादकता बहुत कम है। द्वारसौं, उरोली, बबुरखोला, तुस्यारी समेत कई गांव में आलू की खेती की जाती है। बताया कि विभाग के गुणवत्ताविहीन बीजों के कारण खेती से मोह भंग होने लगा है। यह भी बताया कि बाजार से खरीदे गए आलू बीज अच्छा उत्पादन दे रहा।
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‘डिमांड से अधिक कैसे भेजा जा सकता है। बीज की गुणवत्ता ठीक है। केंद्र से 60 क्विंटल की ही मांग भेजी गई थी। बीज नहीं बांटा जा सका है तो इसकी जिम्मेदारी संबंधित प्रभारी की है। हम बीज वापस नहीं लेंगे।
, जिला उद्यान अधिकारी।
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‘हमने डिमांड 20 क्विंटल की भेजी थी लेकिन 60 क्विंटल पहुंचा। मार्च से अप्रैल के बीच बीज लगाया जाता है लेकिन 27 अप्रैल को मिला। तब तक समय निकल चुका था। इसके बावजूद 10 क्विंटल बीज किसानों को दिया गया। अब 50 क्विंटल गोदाम में पड़े रह जाने से 70 हजार रुपये का नुकसान हो गया है।
– केंद्र प्रभारी’।
Hindustan Hindi News
उत्तराखंड हल्द्वानी
कुमाऊं के किसानों में समय पर आलू बीज न मिलने से नाराजगी
कार्यालय संवाददाता,हल्द्वानी।
Updated: Sat, 15 Dec 2018 02:11
नैनीताल जिले के साथ ही कुमाऊं के समस्त जिलों में आलू की बिजाई का समय शुरू हो चुका है, लेकिन किसानों को अब भी बीज उपलब्ध नहीं हो पाया है। इससे आलू की खेती पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
आलू फल आढ़ती व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष जीवन सिंह कार्की ने बताया कि उनकी ओर से मंडी समिति और जिला प्रशासन से कम से कम एक हजार कुंतल आलू बीज किसानों को उपलब्ध करवाने की मांग की गई थी। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी फिलहाल दो सौ कुंतल बीज ही उपलब्ध करवाने की बात दोहरा रहे हैं। भीमताल क्षेत्र के किसान आनंद मणि भट्ट ने बताया कि यदि समय रहते आलू का बीज नहीं मिला तो देरी से बिजाई करने पर इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के भीतर बीज मिल जाता है तो स्थिति संभल सकती है। उधर, डीएम नैनीताल विनोद कुमार सुमन ने हर हाल में किसानों को बीज उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया था। इसके बावजूद जिला उद्यान विभाग के स्तर पर कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। दिल्ली मंडी में नैनीताल के स्वादिष्ट आलू की मांग सबसे ज्यादा रहती है। ऐसे में कम उत्पादन हुआ तो इस बार सप्लाई काफी कम रहेगी।
देवेन्द्र सिंह, नैनीताल।24 दिसंबर 2018
रामगढ एवं धारी व ओखलकांडा विकास खंड का अधिकांश भाग बागवानी और सागभाजी आलू उत्पादक क्षेत्र है जहाँ पर लगभग 150 गाँवों के किसान नकदी फसल पैदा कर आजीविका चलाते हैं ।
हमारे पहाड़ों के नेताओं ने किसानों के नाम पर बहुत कुछ अपने घरों को भरा लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक किसी भी विकास खंड में ना तो कृषि बिज्ञान केंद्र की स्थापना की ना ही बीज उत्पादन की ओर ध्यान दिया और भी जो उधान विभाग के फार्म बीज उत्पादन करते थे उनको बंद कर किराये में लगा दिया ।
आज मजबूरी में किसानों को बाहरी प्रदेशों से मंहगा आलू का बीज लेना पड रहा है ।
जिसमें हमारे किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है ।
क्या सरकार में बैठे नेताओं व अधिकारियों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है कि नहीं
आज पलायन का मुख्य कारण यह भी है ।
क्या सरकारें यही चाहती है कि पहाड़ों के लोगों को हटाने केसाथ उनकी जमीनो को बिकवा कर अपनी रोटी सेंकने का इरादा तो नहीं है सरकार का।
उत्तराखंड हल्द्वानी
उत्तराखंड आलू बीज के लिए अब भी हिमाचल पर निर्भर
Last Modified: Thu, Dec 06 2018. 13:07 IST
राज्य गठन के करीब अठारह साल बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड राज्य आलू के बीज के लिए हिमाचल पर निर्भर है। जानकारों का कहना है कि नैनीताल के सूपी और रामगढ़ के गागर में आलू बीज उत्पादन केंद्रों के बंद होने से स्थानीय स्तर पर किसानों को आलू का बीज मिलना बंद हो गया है। जबकि हिमाचल से भी पर्याप्त मात्रा में किसानों को बीज नहीं मिल पाता।
पूरे कुमाऊं के लिए हर साल करीब 20 हजार कुंतल आलू के बीज की जरूरत पड़ती है। जबकि सिर्फ पांच हजार कुंतल ही बीज मिल पाता है। चूंकि बीज की सप्लाई का पूरा खर्च सरकार उठाती है, इसलिये इसकी सप्लाई कम हो पाती है। काशीपुर और रुद्रपुर फार्म के आलू बीज पहाड़ के किसान उपयोग नहीं करते।
यह है समस्या का समाधान
प्रदेश सरकार चाहे तो जिला स्तर पर भी आलू बीज तैयार करने के लिए फार्म बना सकती है। सूपी क्षेत्र के प्रगतिशील किसान पूरण सिंह बिष्ट के अनुसार किसान समूह बनाकर यह काम आसान हो सकता है। यहीं पर आलू बीज तैयार होने से सरकार को बीज मंगवाने के लिए सब्सिडी नहीं देनी होगी और किसानों को आसानी से करीब तीन हजार रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बीज मिल जाएगा। लेकिन विभागीय अधिकारी इसको लेकर उदासीन रहते हैं।
आलू का बीज नहीं मिल पाने की बात मेरे संज्ञान में आई थी। जिला प्रशासन के स्तर से जल्द ही बीज उपलब्ध करवाने को लेकर शासन को अवगत करवाएंगे। किसानों को पंद्रह दिसंबर से पहले हर हाल में बीज उपलब्ध करवाने का प्रयास करेंगे।
विनोद कुमार सुमन, डीएम नैनीताल
हिमाचल से बीज न मिला तो आलू की खेती पर बुरा असर पड़ेगा। 15 दिसंबर से पहाड़ में आलू बिजाई शुरू होती है। हम लगातार विभागीय अफसरों से पहाड़ में आलू बीज फार्म विकसित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है।
जीवन सिंह कार्की, अध्यक्ष, आलू फल आढ़ती व्यापारी एसोसिएशन हल्द्वानी मंडी।
संकट में आलू किसान: अगले माह शुरू होनी है आलू की बुआई,अभी तक नहीं मिला आलू बीज
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आलू बीज नहीं मलिने से संकट में किसान। प्रतीकात्मक चित्र
किसानों को हिमाचल के आलू का बीज अब तक नहीं मिला है। दिसंबर से सीजन शुरू हो जाएगा। मजबूरी का आलम ये है कि रामगढ़ धारी और ओलखकांडा के किसानों को या तो खुद के स्रोत से आलू बीज मंगाना पड़ रहा है या फिर मंडी आढ़तियों की मदद से।
Publish Date:Mon, 02 Nov 2020 06:56 AM (IST)Author: Skand Shukla
हल्द्वानी, जेएनएन: पहाड़ के किसानों को हिमाचल के आलू का बीज अब तक नहीं मिल सका है। जबकि, दिसंबर से सीजन शुरू हो जाएगा। मजबूरी का आलम ये है कि रामगढ़, धारी और ओलखकांडा के किसानों को या तो खुद के स्रोत से आलू बीज मंगाना पड़ रहा है या फिर मंडी आढ़तियों की मदद से। सरकार है कि न तो बीज ही समय पर उपलब्ध करा पा रही है और न ही किसानों की 50 फीसद की अनुदान की मांग पूरी कर पा रही है।
बीज फार्म बंद होने से होने लगा मोहभंग
पहाड़ के किसान एक दौर था जब रामगढ़, मुक्तेश्वर, सूपी, धारी सतबुंगा के सरकारी आलू बीज उत्पादन केंद्र से बीज मंगाते थे। जो कि समय पर मिल जाता था। लेकिन देखरेख के अभाव में ये सब बीज फार्म बंद हो चुके हैं। केवल गागर में ही बीज फार्म चल रहा है लेकिन यहां केवल 25 से 30 क्विंटल ही बीत होता है।
हिमांचल के बीज पर निर्भर
राज्य गठन के करीब अठारह साल बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड राज्य आलू के बीज के लिए हिमाचल पर निर्भर है। किसानों का कहना है कि आलू बीज उत्पादन केंद्रों के बंद होने से स्थानीय स्तर पर किसानों को आलू का बीज मिलना बंद हो गया है। जबकि हिमाचल से भी पर्याप्त मात्रा में किसानों को बीज नहीं मिल पाता।
20 हजार क्विंटल बीज की है जरूरत
कुमाऊं में हर साल करीब 20 हजार कुंतल आलू के बीज की जरूरत पड़ती है। धारी में 30 से 35 ग्रामसभाओं में आलू की खेती होती है। ओखलकांडा में दो से तीन तो रामगढ़ में आधा दर्जन ग्रामसभाएं आलू की खेती पर निर्भर हैं।
छह हजार रुपये क्विंटल मिलता है आलू
सूपी आगर आलू उत्पादक स्वायत्त सहकारिता के अध्यक्ष पूरन बिष्ट का कहना है कि उन्हें हर साल 10 क्विंटल से अधिक आलू बीज की जरूरत होती है। जो कि छह हजार रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर हिमाचल से मंगाना पड़ता है। यदि बारिश हुई मौसम ठीक रहा तो एक क्विंटल बीज से 15 हजार क्विंटल तक आलू उत्पादन होता है मौसम खराब रहा तो ये सात-आठ हजार में ही सिमट जाता है।
आलू का बीज 50 फीसद अनुदान में किसानों को उपलब्ध कराए जाने को लेकर पूर्व में कृषि मंत्री को पत्र भेजा गया है। जिससे किसानों की पैदावार अच्छी हो और उन्हें लागत मूल्य प्राप्त हो सके।-मनोज साह, अध्यक्ष मंडी समिति हल्द्वानी
अब तक आलू बीज नहीं मिला है। 15 दिसंबर से पहाड़ में आलू बिजाई शुरू होती है। मांग है कि सरकार हमें हिमाचल का उच्च क्वालिटी का आलू का बीज 50 फीसद अनुदान में उपलब्ध कराए।-पूरन बिष्ट, अध्यक्ष सूपी आगर आलू उत्पादक स्वायत्त सहकारिता।
उत्तराखंड के किसानों को जल्द मिलेगा हिमाचल के आलू का बीज
Published on: 8 Dec 2020, 1:46 pm IST
पहाड़ के किसानों को जल्द हिमाचल के आलू का बीज उपलब्ध होगा. अगले महीने से पहाड़ में आलू की बुआई होने जा रही है.
हल्द्वानी: पहाड़ पर उगने वाले आलू की बुआई जनवरी माह से शुरू होने जा रही है. पहाड़ के आलू की डिमांड कोलकाता सहित अन्य मंडियों में खूब की जाती है. लेकिन हिमाचल के आलू के बीज उपलब्ध नहीं होने के चलते यहां के किसान आलू उत्पादन के क्षेत्र में और आगे बढ़ नहीं पा रहे हैं. वर्तमान में सरकार कुमाऊं मंडल के किसानों को मुनस्यारी के बीज को सब्सिडी के माध्यम से उपलब्ध करा रही है. ऐसे में किसानों में हिमाचल के आलू के बीज की डिमांड को देखते हुए सरकार ये बीज उपलब्ध कराने जा रही है.
उत्तराखंड में होगी हिमाचल के आलू की बुआई.
हल्द्वानी मंडी परिषद के अध्यक्ष मनोज शाह ने बताया कि पहाड़ के किसानों के लिए हिमाचली आलू का बीज उपलब्ध कराने को लेकर वार्ता की जा चुकी है. बजट भी जारी कर दिया गया है. आलू बीज खरीद और किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. इसको लेकर सरकार जल्द निर्णय लेने जा रही है.
मनोज शाह ने बताया कि हिमाचली आलू के बीज पहाड़ के किसानों को उपलब्ध हो जाने से कुमाऊं मंडल में आलू की पैदावार में इजाफा होगा. किसानों की आय में भी वृद्धि होगी. गौरतलब है कि कुमाऊं के रामगढ़, धारी, ओखल कांडा, नैनीताल सहित कई इलाकों में भारी मात्रा में आलू की खेती की जाती है. यहां के किसान आलू की खेती पर निर्भर हैं जो हर साल दिसंबर, जनवरी महीने से आलू लगाने का काम शुरू कर देते हैं.
लेकिन किसानों को हिमाचल प्रदेश का बीज उपलब्ध नहीं होने से किसान चिंतित हैं. किसानों ने सरकार से मांग की है कि मुनस्यारी के आलू की क्वालिटी अच्छी नहीं होने के चलते आलू उत्पादन में उनको नुकसान हो रहा है. इसी कारण किसानों ने सरकार से हिमाचल का बीज उपलब्ध कराने की गुहार लगाई थी.
मंडी समिति के अध्यक्ष मनोज शाह का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के आलू के बीज की कीमत रू 55 से लेकर रू60 किलो है. जबकि मुनस्यारी के बीज की कीमत रू 35 किलो है. सरकार द्वारा हिमाचल से बीज खरीद के लिए वार्ता चल रही है. जनवरी माह में किसानों को बीज उपलब्ध करा दिया जाएगा।