युवा कवि ललित डोभाल ने बेरोजगारी पर लिख दी एक रचना।
1 min readअरविन्द थपलियाल
उत्तरकाशी : प्रखडं नौगांव ग्राम धारी पल्ली निवासी ललित डोभाल ने बरोजगारों का दर्द बया कर ऐसी कविता लिखी जिससे पढने के आप भी कायल होंगे।
आज के इस दौर में
कई युवा बेरोजगार है
इस सब के लिये
आखिर कौन? जिम्मेदार ‘है !
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जहाँ देखो वहाँ बेरोजगार
युवा दिखाई पड़ते है
राजनीति की चर्चा पर ही
सब आपस मे झगड़ते है !!
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जिसे देखो वह नौकरी
के लिये दर दर भटकता है
नौकरी पाने की लालसा में
वह आजीवन अखरता है !!
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नौकरी के लिये युवा
दर 2 की ठोकरे खाता है
डिग्री डिप्लोमा सब ठीक है
फिर भी नम्बर नही आता है !
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नौकरी के लिये आज
युवाओं द्वारा अनेकों
ठोकरे खाई जाती है
कभी किसी कम्पनी में
कभी किसी दफ़्तर में
कागजी पतरी दिखाई
जाती है !
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पूछे जाने पर जब
पता चलता है कि
आखिर नौकरी
क्यों नही मिलती है
दुःख तो तब होता है
जब जबाब आता है कि
यहाँ कागजी डिप्लोमा के
साथ साथ सिफारिश व
रिश्वत भी लगती है !
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युवा बात सुनकर
सहम सा जाता है
नौकरी के लिये रिश्वत
कमीशन देना उसे
नही भाता है !
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डिग्री डिप्लोमा होने पर भी
नौकरी नही मिल पाई
नौकरी न मिलने पर
कौन यहां हरजाई !
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आज के इस दौर में
सरकारे बदलती रहती है
सरकारे बदलने पर
युवाओ की आशाएं भी
उग आती है !
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सरकारे चुनाव में
बेरोजगारी को मुद्दा
बनाती है
इस लोकतांत्रिक देश मे
वह अपना काम बनवाती है !
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गाँव का गरीब युवा
शहर में जब नौकरी के
लिये जाता है
डिग्री डिप्लोमा होने पर भी
वह खाली हाथ लौट आता है !
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गाँव मे जब उस पर
ताने मारे जाते है
तब उसे अपने बचपन के
वो दिन याद आते है
कि जो सपने उसने
बचपन मे देखे थे
आखिरकार वो सपने
ही रह गये
गांव के लोग भाई बन्धु
रिश्तेदार अपने तानो में
न जाने क्या कुछ नही
कह गए ।