बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से गर्भवती बेटियाँ तोड़ रही दम – विजेन्द्र रावत
अरविन्द थपलियाल
उत्तरकाशी : आखिर हमारी बेटियां सड़कों पर कब तक दम तोड़ती रहेंगी?
आखिर हम कब तक मौन रहेंगे, और अपने प्रतिनिधियों और सरकार से सवाल नहीं पूछेंगे??
आखिर हम कब तक इतने खुदगर्ज और स्वार्थी बनकर अपने गांवों ल बेटियों को यों मरने व मिटने देंगे???
रविवार 28 फरवरी को उत्तरकाशी के विकास खंड मुख्यालय में हमने यमुना घाटी (रंवाई जौनपुर व जौनसार बावर) की जन समस्याओं पर एक नागरिक पंचायत का आयोजन किया, हम बैठे ही थे कि तभी पता चला कि रात को प्रशव पीड़ा से तड़पती एक और बेटी को यहां के सरकारी अस्पतालों ने रातभर इतना भगाया कि इसने देहरादून के रास्ते में डामटा के पास दम तोड़ दिया आखिर बेचारी क्षेत्रीय समस्याओं से दूर फूलमालाओं से लदे अपने बड़े नेताओं की स्तुति में गाते लोगों की बेरुखी ये मासूम कब तक झेलती?
यह सुनकर दिल बेहद आहत हुआ जिस पर हमने पंचायत में दो मिनट का मौन रखकर अपनी गैर जिम्मेदाराना, जिम्मेदारी पूरी की।
कुछ दिन पहले यमनोत्री विधायक के निजी सचिव की 21 साल की युवा पत्नी को बड़कोट में प्रसव पीड़ा हुई, उसे बड़कोट के सरकारी अस्पताल ले जाया गया, उन्होंने उसे देहरादून दून अस्पताल के लिए रैफर कर दिया करीब डेढ़ सौ किलोमीटर तक तड़पती बेटी दून अस्पताल पहुंची तो वहां भी भर्ती नहीं हो पाई फिर उसे एक निजी अस्पताल की ओर दौड़ाया गया, पर उसने निजी अस्पताल के चौखट पर दम तोड़ दिया।
अफसोस कि यमुना व टौंस घाटी के दो सौ किमी के क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में न कहीं महिला चिकित्सक है और न कहीं आपरेशन जैसी मामूली सुविधा है।
इसलिए ये सिर्फ रेफरल सेंटर बने हैं।
पांच साल में इस क्षेत्र में प्रशव पीड़ा से सत्तर से ज्यादा बेटियां देहरादून के रास्ते सड़कों पर दम तोड़ चुकी है और यह दुखद दौर अभी भी जारी है।
बस, एक छोटे से बेस अस्पताल की मांग सहित क्षेत्रीय जन समस्याओं पर हमने चौपाल बैठाई थी, यह किसी पार्टी के समर्थन व विरोध में नहीं थी, पर घाटी में ऐसी हवा चलाई कि इस पंचायत को राजनीतिक दलों ने अपने विरोध में मान लिया और वे यहां से नदारद रहे। आखिर ये कैसी राजनीति है कि जिसमें हम अपनी मरी हुई बेटियों व भविष्य में भी अपनी बेटियों को मरने के लिए छोड़ देते हैं?
इस पंचायत में आये अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों का मैं आभारी हूं कि जिन्होंने गम्भीरता से भावुक होकर यहां की समस्याओं पर चर्चा की।
उम्मीद करते हैं कि इस घाटी की जीवन देने की उम्मीद में हमारी उपेक्षा के कारण शहीद हुई बेटियां हमें तब तक चैन से नहीं रहने देंगी जब इस घाटी में एक बेस अस्पताल न खुल जाता!