April 16, 2024

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उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में आलू उत्पादन की घटती जोत।

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उत्तराखंड : आलू की व्यवसायिक खेती उत्तराखंड के ऊंचाई व अधिक  ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सदियों से होती आ रही है । आलू उत्पादन इन क्षेत्रो के कास्तकारौं की रोजी रोटी व आजीविका से जुड़ा हुआ विषय है ।

उत्तराखंड के हुक्मरानों/नीति निर्धारकों के गलत निर्णयों के कारण आज पहाड़ी क्षेत्रों बिशेष रूप से सीमांत जनपदों के आलू उत्पादक परेशान व निराश हैं ।

उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व पर्वतीय क्षेत्रों के प्रत्येक जनपद में एक या दो आलू बीज उत्पादन फार्म होते थे – टेहरी जनपद में धनौल्टी,काणाताल  उत्तरकाशी में द्वारी,रैथल पौड़ी में भरसार,खपरोली रुद्रप्रयाग में चिरवटिया, घिमतोली चमोली जिले में परसारी,कोटी,रामणी पिथौरागढ़ में मुनस्यारी ,धारचुला अल्मोड़ा में दूनागिरी , जागेश्वर नैनीताल जनपद में गागर, रामगढ़ आदि।

इन विभागीय आलू फार्मों में हिमाचल प्रदेश के कुफरी या अन्य क्षेत्रों से आलू का फाउंडेशन बीज मंगा कर आलू का प्रमाणित बीज तैयार किया जाता था जिसे मांग के अनुसार स्थानीय कास्तकारों को  आलू बुवाई के समय वितरित किया जाता था।

आलू के प्रमाणित बीज  की मांग बहुत अधिक रहती है , इन आलू फार्मौ में कुछ कास्तकार दैनिक श्रमिक के रूप मात्र इसलिए कार्य करते थे , कि उन्हें आलू बीज की छर्री याने ग्रेडिंग के बाद जो छोटा आलू का बीज बच जाता है उन्हें मिल सके क्योंकि दैनिक श्रमिकों को ही आलू की छर्रियां उचित मूल्य पर दी जाती थी ऐसा मेरा आलू फार्म गागर जनपद नैनीताल का अनुभव रहा है।

हमारे देश में मात्र 30 प्रतिशत ही आलू का प्रमाणित बीज उपलब्ध हो पाता है । पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादित आलू बीज की मांग अधिक रहती है , पहाडी क्षेत्रों में उत्पादित प्रमाणित आलू बीज बोने से कास्तकारौं को 16 – 20 गुना से भी अधिक उपज मिलती है, वहीं बाजार से क्रय किए गए सामान्य  व अपनी पुरानी फसल से रखे आलू बीज से उपज काफी कम याने मात्र 3 – 4 गुना ही आलू की उपज मिल पाती हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों में आलू बीज की महत्वा देखते हुए अस्सी के दशक में बीज प्रमाणीकरण संस्था का कार्यालय चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में

खोला गया था , जिससे  पर्वतीय क्षेत्रों के कास्तकार आसानी से प्रमाणीकरण कर प्रमाणित आलू बीज का उत्पादन  कर सकें , इस कार्य के लिए  जोशीमठ मुनस्यारी व  उत्तरकाशी में उद्यान विभाग के अतिरिक्त कर्मचारियों को  आलू के प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु नियुक्त भी किया गया था। दुर्भाग्य से आज ये पद और कार्यालय कहां गए कुछ पता नहीं।

उत्तराखंड राज्य बनने पर उमीद जगी थी कि पर्वतीय क्षेत्रों के कास्तकारौ की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा किन्तु अलग राज्य बनते ही उत्तराखंड के हुक्मरानों/ नीति निर्धारकों द्वारा उद्यान विभाग के  आलू बीज उत्पादन फार्मों को बन्द कर दिया गया तथा इन फार्मों को  स्वंयम सेवी संस्थाओं तथा पन्त नगर कृषि विश्व विद्यालय को हस्थानान्तरण कर दिया गया । इन आलू फार्मौ के बन्द होने से स्थानीय कास्तकारों को आलू का प्रमाणित बीज मिलना बंद हो गया ।

उद्यान विभाग द्वारा आलू बीज की कोई अतिरिक्त व्यवस्था पहाड़ी क्षेत्रों के आलू उत्पादकों के लिए नहीं की गई। कास्तकारों ने स्वयंम के आलू बीज से या बाजार में उपलब्ध सामान्य किस्म के आलू की बुवाई की जिससे उनको आलू की बहुत कम उपज मिली । आलू उत्पादकों को आलू की खेती कम उपज के कारण अलाभ कारी लगने लगी जिस कारण आलू की खेती कम होती गई।

उद्यान विभाग द्वारा फरवरी मार्च माह में काशीपुर व  अन्य मैदानी क्षेत्रों में उगाया गया नया बीज का आलू बिना dormancy break किये कई पर्वतीय क्षेत्रों में भेजने से भी आलू उपज पर प्रतिकूल असर पड़ा आज इन क्षेत्रों के कृषकौं के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है।

हजारौं हैक्टेयर आलू फार्मों के बन्द होने के बाद भी उद्यान विभाग के 2015- 2016 के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में 25889.76 हैक्टेयर क्षेत्र फल में आलू की खेती की जाती है जिससे 358244.23 मेंट्रिक टन आलू का उत्पादन होना दर्शाया गया है जो कि विश्वसनीय नहीं लगता।

 

पिथौरागढ़ में मुनस्यारी, धारचुला व मदकोट क्षेत्र में बौना, गांधीनगर,क्वीरी,सरमोली, गोल्फा,निर्तोली, गिरगांव आदि लगभग  40 से भी अधिक गांवों के कास्तकार , सहकारिता के माध्यम से   आलू  प्रमाणित बीज का  अच्छा उत्पादन कर रहे हैं ।

 

अन्य जनपदों में भी इसी तरह के प्रयास होने चाहिए, उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी व चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंडों में आलू प्रमाणित बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।

 

रिलायंस फाउंडेशन उत्तरकाशी द्वारा जनपद के भटवाड़ी विकास खण्ड के अन्तर्गत जखोल,द्वारी,रैथल,नतीण पाला,गोरसाली,वारसू,पाई आदि गांवों का चयन     बर्ष 2014-2015 में आजीविका से जुड़े कृषि कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया। इस क्षेत्र के कास्तकार पूर्व से ही आलू उत्पादन करते आ रहे हैं , किन्तु क्षेत्र  के आलू बीज उत्पादन फार्म, द्वारी के बन्द हो जाने के कारण क्षेत्र के कास्तकारौ को प्रमाणित आलू बीज मिलना बंद हो गया। आलू का प्रमाणित बीज न मिल पाने के कारण कास्तकार स्वयमं के उत्पादित आलू बीज से आलू की खेती कर रहे थे जिससे उनको आलू की बहुत कम उपज मिल रही थी धीरे धीरे आलू की अलाभकारी खेती होने के कारण कास्तकार आलू की खेती छोड़ ने लगे। क्षेत्र में कार्यरत रिलायंस फाउंडेशन द्वारा चयनित गांव के कास्तकारों का हिमाचल प्रदेश के लाहोल स्फित ,आलू उत्पादक संघ के कास्तकारौं से संपर्क करवाया गया साथ ही उनके माध्यम से ही  प्रमाणित आलू बीज स्वयंम कास्तकारों द्वारा क्रय किया गया ,जिससे पहले की अपेक्षा आलू की उपज कई गुना अधिक हुयी ,अब वहां के कास्तकार हिमाचल प्रदेश के कास्तकारों से सम्पर्क कर आलू बीज की व्यवस्था स्वयंम से कर रहे हैं । इस कार्य के लिए कास्तकारौ ने रिलायंस फाउंडेशन की सहायता से  प्रत्येक ग्राम सभा में ग्राम विकास कोष बनाये है ,जिसमें ग्राम वासियों द्वारा प्रत्येक माह धन जमा किया जाता है ,इस कोष का संचालन ग्राम वासी स्वयमं करते हैं ।ग्राम विकास कोष से ही कास्तकार आलू बीज क्रय करते है।वर्तमान में 12 गांव के  कास्तकार समूह में आलू का अच्छा उत्पादन कर रहे हैं।

उद्यान विभाग द्वारा बजट के अनुसार आलू का प्रमाणित बीज मुनस्यारी धारचुला व अन्य स्थानों से मंगा कर आधी कीमत पर आलू उत्पादकों को वितरित किया जाता है किन्तु मांग के अनुसार यह काफी कम होता है साथ ही दूर से लाने के कारण कभी कभी समय पर भी उपलब्ध नहीं हो पाता है।

यदि इन क्षेत्रों के कास्तकारों को योजनाओं में समय पर प्रमाणित आलू का बीज उपलब्ध कराया जाय तो इन कास्तकारौ की आर्थिक स्थिति अच्छी हो सकती है।पर्वतीय क्षेत्र के इन आलू उत्पादकों के लिए सरकार को बिशेष प्रयास करने होंगे यदि यही स्थिति  बनी रहती है तो इन क्षेत्रों से भी पलायन बढेगा ।

राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषकों के हित में बनेंगी किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को हिमाचल प्रदेश के डा० परमार जैसा सक्ष्म व अनुभवी नेतृत्व नहीं मिला , जिसका प्रशासकों ने पूरा लाभ उठाया  योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी।

राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए विभाग कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है, जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके।

यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है, वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को , वहां से फील्ड स्टाफ को ,अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा  कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है ,सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।

उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।

राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर   योजनाओं में सुधार ला सके।

योजनाओं में जबतक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती ,कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी सोचना वेमानी है।

योजनाओं पर प्रति बर्ष हजारौं करोड़ खर्च करने वाला उद्यान विभाग राज्य बनने के 19 बर्षौ बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों के कृषकौं को समय पर आलू का प्रमाणित बीज नहीं उपलब्ध करा पा रहा है।

हुक्म रानौं/ नीति निर्धारकों को चाहिए कि योजनाओं में आलू के प्रमाणित बीज उत्पादन की कार्य योजना बनाकर ,मुनस्यारी धारचुला की तरह ही , चमोली जनपद के जोशीमठ एवं उत्तरकाशी  जनपद के भटवाड़ी विकास खंडों में आलू उत्पादक संघ बना कर कास्तकारों से आलू का प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम शुरू करने का प्रयास करना चाहिए, साथ ही पूर्व की भांति हर जनपद में आलू बीज उत्पादन फार्म विकसित किए जायं ,जिससे ऊंचाई व अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में फिर से स्थानीय प्रमाणित आलू बीज समय पर मिल सके, जिससे इन क्षेत्रों की आलू की घटती जोत रुक सके , तथा आलू उत्पादक फिर से आलू की लाभकारी खेती कर सकें तथा राज्य हिमाचल प्रदेश की तरह आलू बीज उत्पादक राज्य बन सके।

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