September 19, 2024

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पहाड़ के प्रवेश अपनी इच्छाशक्ति व लगन से हुए सफल, युवाओं के लिए बने प्रेरणास्रोत।

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शिखा डोभाल

बड़कोट/उत्तरकाशी : कहते हैं जब मन में ठान ली हो, तो मंजिल भी झुककर सामने खड़ी हो जाती है, जी हां में बात कर रही हूं ऐसे ही एक नौजवान की जिसके सामने चट्टानों जैसी कई मुसीबतें सामने आई, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम उसे उसकी मंजिल तक पहुँचा दिया। मैं बात कर रही हूं उत्तरकाशी डुंडा नगल(महरगांव) के प्रवेश भट्ट की जिसकी पारिवारिक स्थिति बेहद ही चिंताजनक है, पिता बृजमणि भट्ट खेतीबाड़ी का काम करते हैं, और माता अनुसूया देवी घर का चौका चुला सम्भालती हैं। खेतीबाड़ी में केवल दो वक्त की रोटी का ही गुजारा चल पाता है, वहीँ प्रवेश ने जैसे तैसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी अध्यापक बनने की ठान ली, पढ़ाई के साथ साथ इन्हें हिंदी भाषा के प्रति अटूट प्रेम ने इन्हें छोटी मोटी कविताएं लिखने के लिए भी प्रेरित किया, उसी सच्ची लगन के बदौलत आज इनका चयन अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से सहायक अध्यापक हिंदी के पद पर हो गया है, परिवार में बड़ी खुशियों का माहौल बना है, साथ क्षेत्र में युवाओं और सम्पन्न लोगों के लिए एक बड़ा संदेश भी है, कि संसाधन चाहे जैसे भी हों जब तक आपके अंदर दृढ़ इच्छाशक्ति व लगन नहीं है तब तक आप कुछ सफल नहीं हो सकते हैं।

माँ हिंदी

माँ अब बूढ़ी हो गयी है क्या..?
तेरे पूत अब तुझे वृद्धाश्रम भेज रहे हैं,
अब तेरे शब्द कर्कश हो गए
लज्जित होते वे सब तुझे जुबां पर लाने में…।

अरे हाँ,
अब तेरी सौत अंग्रेजी का बोलबाला है,
तेरे अपने ही घर में.।
तेरी सन्तान अब उसी के गुणगान जो करते हैं..
और करें भी क्यों न..
समाज में मान-सम्मान जो अधिक मिलता उन्हें,

और हाँ,
वे खुद भी तो गर्वित होते हैं
तेरी ममतामयी गोद को त्याग..
उसकी गोद में बैठ इठलाने में..।

सुन माँ !
अब तू बूढ़ी हो गयी है..
तेरी समृद्धि के ग्रंथ अब बंद आलमारियों में धूल चटा रहे है,
तेरी यौवनता की गूंज पोथियों में लिपट कर मंद पड़ रही हैं।

सुना था..
तेरे हर शब्द अमृत बूँद समान थीं,
शायद वे विषाक्त हो गए हैं…
नहीं….नहीं…

सुन माँ !
क्या हम क्षमा योग्य हैं.?
“कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति”

माते !
अब हमें भारतेंदु हरिश्चंद्र सा मातृभक्त चाहिए
जो तेरी नग्नता हो ढ़क कर..
तुझे फिर उच्चासीन करे..।

हाँ, आवश्यकता है,
आचार्य महावीर सा गुणीपुत्र की,
जो तेरी अस्मिता जान तुझे दसों दिशाओं में फैलाये..।                                

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